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चीत्कार या प्रतिकार भाग -2
जौहर से पूर्व के अदृश्य अलौकिक रहस्य पर रचनात्मक दृष्टि
“अलाउद्दीन खिलजी बख़ूबी जानता था कि रानी पद्मिनी एक स्त्री नहीं है और चित्तौड़ एक दुर्ग नहीं है l यह दोनों समस्त हिंदुओं के स्वाभिमान का प्रतीक है, जिसका मर्दन क्षत्रियों, हिन्दुओं के आत्मसमान का विनाश हैं । सती के सतीत्व को चुनौती देकर खिलजी ने हिंदू राष्ट्र के अस्तित्व को घुटनो के बल पर लाने की साजिश रची।“
चित्तौड़ पर आक्रमण की पृष्ठभूमि
गतांक से आगे ....
यह संयोग मात्र है या कोई देव विधान। छठवीं शताब्दी में अरब में इस्लाम का आरंभ हुआ और इधर देवभूमि भारत में गुहिल राजवंश को स्थापित कर मानो प्रकृति और पुरुष ने भारत की प्रतिरक्षा की तैयारी आरंभ कर दी हो।
मोहम्मद कासिम के बाद् सिंध का गवर्नर बने जुनैद अल मुरी ने 723 ईस्वी से भारत की पश्चिमी सीमाओं पर उत्पात मचाना आरम्भ किया l हिन्दू राष्ट्र के पिता और गुहिलवंशी बप्पा रावल (726-758 ईस्वी) के नेतृत्व में हिन्दु राजाओ की संयुक्त सेना ने जुनैद का वध कर अरब सेना का इरान तक पीछा करते हुए गजनी तक अधिकार कर लिया l
बप्पा रावल के वंशज रावल खुमाण द्वितीय (820 -860ईस्वी) ने अरब सेनापति हाशिम और महमूद( अल मामू ) को पराजित कर महमूद को बंदी बना अरब आक्रंताओ और इनके खलीफाओं का मनोबल तोड़ दिया इसके बाद इस्लामी आक्रान्ताओं ने सिंध के रास्ते भारत में घुसने का विचार छोड़ कर पंजाब,कश्मीर का रास्ता अख्तियार किया ।
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद 1206 ईस्वी में गौरी का दास कुतुबुद्दीन दिल्ली के दास वंश का पहला शासक बना । कुतुबुद्दीन के बाद 1210 ईस्वी मे कुतुबुद्दीन का दास इल्तुतमिश शासक बना। यह वही इल्तुतमिश है जिसे 1234 ईस्वी के तुमुल के युद्ध में मेवाड़ रावल जैत्र सिंह ने का बदला लेते हुए पराजित कर चितौड़ को मेवाड़ की राजधानी घोषित किया।इल्तुतमिश इस हार के बाद 1236 ईस्वी में आत्मग्लानि से मर गया।
इल्तुतमिश के बाद हुई उठा पटक में अंततः 1266 ईस्वी में बलबन शासक बना बलबन इल्तुतमिश का दास था। इसी बलबन को मेवाड़ रावल समर सिंह (1272-1303ईस्वी) ने खदेड़ कर दिल्ली की सीमाओं तक ही सीमित कर दिया थाइस प्रकार मेवाड़ के हिन्दू राजाओ ने 7 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी तक इस्लाम की आंधी से सनातन ज्योतिको 500 वर्षो तक बचाए रखा
“होतो नह मेवाड़ तौ, होती नह हिन्दवाण l
खान्डो कदे न खडकतौ, भारत छिपतो भाण ll
खिलजियों की पृष्ठभूमि
कुतुबुद्दीन से लेकर बलबन तक जो दास वंश दिल्ली की सीमाओं में शासन कर रहा था, उसमे हाकिम,मलिक और अमीरों के पद पर खिलजी भी थे। नालंदा को जलाने वाला बख्तियार खिलजी खुद कुतुबुद्दीन ऐबक का समकालीन था। बलबन की मृत्यु के बाद अलाउद्दीन खिलजी का चाचा-ससुर जलालुद्दीन खिलजी अपनी छल कपट की शक्ति के कारण 1290 ईस्वी में सत्ता पर काबिज हुआ और इस प्रकार दिल्ली का खुनी सिंहासन खिलजियों के अधिकार में आ गया।
अलाउद्दीन खिलजी का जन्म जलालुद्दीन खिलजी की पनाह में 1267 ईस्वी में हुआ था l अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सगे चाचा ससुर के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में बलबन के लाल महल में 1296 ईस्वी में अपना राज्याभिषेक करवाया।
अलाउद्दीन अपने चाचा ससुर के शासन में जब कड़ा का मामूली हाकिम था तब से उसकी नजर न केवल गुजरात पर थी बल्कि देवगिरी के रास्ते दक्षिण भारत में प्रवेश कर तलवार के दम पर एक नया दीन चलाकर पैगंबर की तरह कयामत तक कायम रहने का खूंखार धार्मिक उद्देश्य अपने शैतानी दिमाग में लिए बैठा था। l
परंतु इसके सिकन्दर बनने के मंसूबो के बीच सबसे बड़ी रुकावट था मेवाड़। अलाउद्दीन इतिहास से सबक ले चुका था कि बप्पा रावल से लेकर अब तक मात्र मेवाड़-चित्तौड़ ही हिन्दुओ की अस्मिता और अस्तित्त्व, स्वत्व और स्तीत्त्व का केंद्र है। इसी लिए अलाउद्दीन न केवल मेवाड़ की राजनीतिक क्षत्रिय शक्ति को बल्कि इसके द्वारा वह हिंदुत्व की सांस्कृतिक विरासत को कुचलकर समूचे भारत में शरीयत की प्रभुसत्ता स्थापित करना चाहता था। मेवाड़ को नेस्तानाबूत,पदाक्रांत किये बिना वह अपने मंसूबो पर कामयाब नहीं हो सकता था l यही कारण था कि अलाउदीन ने चित्तौड़ आक्रमण की कमान खुद ने संभाली जबकि गुजरात और रणथम्भोर की अगुवाई इसके सेनापतियों ने की थी l
मध्ययुगीन इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी लिखता है कि “अलाउद्दीन ने स्त्रियों तथा बच्चों को उनके संरक्षकों के अपराधों के लिए दंडित करने की प्रथा आरंभ की l प्रतिरोध के लिए, बदला लेने के लिए स्त्रियों का सतीत्त्व लूटने तथा उनके साथ घोर अपमान जनक व्यवहार करने की आज्ञा दे दी थी l तत्पश्चात उसने इनको दुराचारियों के साथ वेश्याओं के समान उपभोग करने के लिए सौंप दिया l
इस प्रवृति के चलते अलाउद्दीन ने देवगिरी के राजा रामचंद्र की कन्या छिताई को भ्रष्ट किया l 1299 ई. में गुजरात पर पहले ही हमले के साथ राजा कर्ण की रानी कमला दी दिल्ली लाकर अलाउद्दीन खिलजी के हरम में शामिल कर ली गई। 1301 ईस्वी में रणथम्भोर नरेश हमीरदेव पर आक्रमण के साथ इनकी पुत्री को भी हरम में डालना चाहता था l इसी के चलते रणथम्भोर में जल-अग्नि जौहर हुआ l और अंततः अलाउद्दीन ने रावल समर सिंह के पश्चात रतन सिंह के मेवाड़ रावल बनते ही जनवरी,1303 ईस्वी में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया l
खिलजी की पैशाचिक चाल
“महाभारत में धर्म पर चलने वाले पांडवों को बल से हरा नहीं सकने पर शकुनि की चौसर के माध्यम से दुर्योधन के पास द्रोपती के चीर हरण से बेहतर कोई दूसरा छल नहीं था।“
दो महीनो की घेराबंदी के बाद सर्प ने विषवमन किया,रावल को कहला भेजा “कुरान का वास्ता,पिछले जन्म में हम भाई थे,में तो पद्मिनी को भी अपनी बहन बनाना चाहता हूँ,बस उसके हाथ से परोसा भोजन करने की इच्छा है l कुटिलता कामयाब हुई,रावल रतन सिंह कैद कर लिए गए l हिंदुओ का मान मर्दन करने के लिए ही खिलजी ने हिदू धर्म रक्षक मेवाड़ी गर्विलो के सामने दुर्ग का घेरा उठाने, रावल रतन सिंह को मुक्त करने के लिए रानी पद्मिनी को सोपने की शर्त रखी। अलाउद्दीन खिलजी बख़ूबी जानता था कि रानी पद्मिनी एक स्त्री नहीं है, और चित्तौड़ एक दुर्ग नहीं है l यह दोनों पूरे हिंदुओं के स्वाभिमान का प्रतीक है, जिसका मर्दन पूरे क्षत्रियों, हिन्दुओं के आत्मसमान का विनाश हैं l मात्र 18 वर्षीय रानी पद्मिनी अब सनातन के गौरव का केसरिया ध्वज बन चुकी थी। सती के सतीत्व को चुनौती देकर खिलजी ने हिंदू राष्ट्र के अस्तित्व को घुटनो के बल पर लाने की साजिश रची।
रानी पद्मिनी का दुर्गा-स्वरुप
विकट स्थिति विशेष में ही महान व्यक्तियों के संस्कार उनके कार्यों से प्रदर्शित होते है l गौरा के गर्जन और बदल के तर्जन से रावल रतन सिंह मुक्त हुए, साके की तैयारियां हुई l किन्तु अब हिदू राष्ट्र के पिता “बप्पा रावल” के कुल गौरव का कीर्तिध्वज माँ पद्मिनी के कंधो पर था l रावल के साथ पद्मिनी का पाणिग्रहण हुए तीन वर्ष से भी कम समय हुआ था और विरह -निर्णय की घड़ी आ चुकी थी l बप्पा रावल की आत्मा “हिन्दुत्व की चिति” बन कर पद्मिनी के चैतन्य में प्रविष्ट कर गई l
पथ और पथप्रदर्शक की राह तकते रावल से जिरह कर कृष्ण के आगमन की संभावनों को रद्द करती हुई पद्मिनी महिषासुरमर्दनी माँ काली सी गरजी “हिन्दू स्त्रियों का सम्मान भोग - विनिमय की वस्तु नहीं है l धर्म की बलिवेदी पर बलि हो जाना चित्तौड़ ने सिखा है, किसी देश ने नहीं, स्वाभिमान की लिए जीवन को त्र्रण के सामान बहा देना बप्पा रावल के वंशज जानते है,और कोई नहीं l देह और देश क्षणभंगुर है l मलेच्छ मेवाड़ की राजनीतिक सत्ता हथिया सकते है लेकिन राष्ट्र “आत्मा” की तरह शाश्वत है, सनातन है l राज और राजे आते जाते रहेंगे, राष्ट्र की संस्कृति जीवित रहनी चाहिए l
आत्मसमर्पण, धर्मानान्तरण, हरम में अपने दूषित बीजों के लिए भूमि बना कर,मृत देह के साथ सम्भोग जैसे पैशाचिक कृत्य के द्वारा ये मलेच्छ इस राष्ट्र की अस्मिता को रोंद कर हमारी आने वाली पीढ़ियों के मानस पर रोज नंगा नाच करेंगे l इसलिए यह चीत्कार का नहीं, सनातन क्षत्रीय धर्म के संस्कार को आकर देने का, म्लेच्छो का प्रतिकार करने का समय है l
मानो रानी पद्मिनी के मुख से रणचंडी ने आह्वान किया – कुल गौरव को कलंकित कर नर पिशाच मलेच्छ की दासियां बनने के स्थान पर हम स्वयं को पवित्र अग्नि को सुपुर्द कर देंगी l
एक क्षत्राणी का यह दुर्गा स्वरुप समस्त वर्ण-जातियों की लगभग 16 हजार से भी अधिक स्त्रीयो की कल्पना से भी परे था। धमनियों में धर्म उबल पड़ा, जय भवानी का जयघोष से खिलजी की रूह कांप गई और रानी पद्मिनी के नेतृत्व में अगस्त 1303 ईस्वी में चित्तौड़ का पहला जौहर, साके से पहले पूर्ण हुआ l जौहर की ज्वालाओं ने असुरो के विनाश हेतु साके का मार्ग आलोकित किया l
“अग्नि -लपटों में धधक -धधक, जौहर की वेदी चमक उठी l
हाड़ और मांस की भैंट लिए, हर हिन्दू बाला दहक़ उठी ll
जौहर पर वामपंथी विमर्श और उसका जवाब
“एक बुद्धिजीवी लिखते है ... स्त्री से अपेक्षा करता है कि वह पुरुष की चिता पर सती हो जाए और आक्रांता के सामने बजाय व्यक्ति के तौर पर मुकाबला करने के सामूहिक आत्मदाह कर ले l ठीक इसी तरह जैसे पराजय की आशंका से सेना अपने हथियार नष्ट कर देती हैं,फूल तोड़ देती हैं,खेत जला देती हैं ताकि यह सब शत्रु को उपलब्ध न हो सके l इस तरह मर्यादावादी सोच पद्मिनी जैसे चित्रों को आदर्श बताता है ” l
जौहर पर इस तरह की टिप्पणी से क्रोधित चिंतको को वीर सावरकर की पुस्तक “Six Glorious Epochs of Indian History “ पढ़नी चाहिए l इस पुस्तक के कुछ अंश इस तरह है –“....दानवीय मुसलमानी आस्था के अनुसार गैर मुसलमानी औरतों का अपहरण और उनका जबरन धर्म परिवर्तन प्रत्येक मुसलमान का धार्मिक कर्तव्य था । इससे उनकी कामुकता और विध्वंस प्रवृत्ति बढ़ गई और परिणाम स्वरुप उनकी संख्या में भी अभिवृद्धि हुई l व्युत्क्रमानुपाती रूप में हिंदू जनसंख्या प्रभावित हुई।.... यह इस्लामी जनसंख्या बढ़ने का सुचारू ढंग था”l
“.......... पशुओं की दुनिया में भी प्रकृति के इसी नियम का पालन किया जाता है.....जंगली जातियां केवल अपने मर्द शत्रुओं को मारती हैं,औरतों को नहीं lउन्हे तो विजेता जनजाति आपस में बांट लेती है”
“......... आक्रामक मुसलमान धर्मांता के साथ शत्रु पक्ष की औरतों का जबरन अपहरण करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे l वह औरतों को आम संपत्ति समझ कर उसे हानि पहुंचाते, अपवित्र करते और सुल्तान से लेकर एक आम सिपाही तक में उसे बांट डालने तथा अपने मत में पूरी तरह मिल लेते थे l यह उनकी संख्या को बढ़ाने वाला सुकृत्य समझा जाता था” l
“.........अरब मुसलमानों की आक्रामक अल्पसंख्यक सेनाओं और सेनापतियों ने उत्तरी अफ्रीका के बहुसंख्यक लोगों पर किये गये अपने आक्रमणों में अत्यन्त सोच-विचार कर इसी सृष्टिक्रम का अवलम्बन किया था। उन काफिरों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् उनसे वसूल किये जाने वाले हर्जाने में आधा अंश पैसा और आधा स्त्रियों के रूप में लिया जाता था। उन स्त्रियों को मुसलमान बनाकर ईमानदार सिपाहियों में दस-दस, पाँच-पाँच के हिसाब से वितरित कर दिया जाता था। उन अफ्रीकी दासियों की सन्तानें मुस्लिम वातावरण में पलने और जन्मना मुसलमानवंशीय समझी जाने के कारण कट्टर मुसलमान बनती गयी”l
अब तो हमें सोचना चाहिए कि इस धार्मिक सोच के साथ तत्समय के विदेशी इस्लामी आक्रमण पर यदि इस राष्ट्र के सभी जौहर व्रत में होम हो जाने वाली हजारों हिन्दू नारियों ने इन मलेच्छों के हरम में इनके दूषित बीजों के लिए भूमि बनना स्वीकार कर लिया होता तो न जाने आज तक कितने रक्तबीज इस देश में पैदा हो गए होते ! सामान्य गुणा-भाग भी करेंगे तो हमारी आँखे फटी की फटी रह जाएँगी l
मेरी दृष्टि में मां पद्मिनी का बलिदान तत्समय की परिस्थितियों में सनातन धर्म आधारित राष्ट्रवाद का प्रतीक है l जौहर की घटना ने राष्ट्र की हिंदू जनता को वर्ग-वर्ण-जाति की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठ कर कभी भी अधर्म के सामने आत्मसमर्पण नहीं करने, अधीनता स्वीकार न करने की नैतिक ऊर्जा प्रदान की lइस जौहर से हिंदू महिलाओं ने धर्म के प्रति निष्ठा के मूल्य को अकल्पनीय ऊंचाइयों तक पहुंचा कर राष्ट्र के मनोबल को टूटने से बचा लिया l खुद को राख में बदल कर मलेच्छ्पति के मंसूबो को खाक में मिला दिया l
“चित्तौड़ के जौहर - साका ने, मेवाड़ -भूमि को अमर किया l
धर्म और मान की रक्षा में, जन जन ने कैसा समर किया ll
कुछ जातिवादी प्रश्न करते हैं कि आखिर किन कारणों से भारतीय हिंदू स्त्रियों ने युद्ध करने या विषपान अथवा कटार आत्मघात के स्थान पर जौहर जैसे विकट विकल्प को चुना? तो इन लोगो को जवाब श्री ओमेंद्रजी रत्नू ,प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक “महाराणा” में इस प्रकार देते है “ ..इस्लाम में गैर मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करना न्योचित माना गया है । युद्ध में जीती गई गैर मुस्लिम महिलाओं को उनके धर्मगुरु लौंडी कहकर भी संबोधित करते हैं ।और यही इस्लामी अभियानों की आधारभूत अवधारणा भी थी। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किया जाने वाला एक और घृणित कृत्य था मृत शरीर के साथ संभोग। इसे अंग्रेजी में नैक्रोफीलिया कहते हैं। इस्लामी आक्रांताओं द्वारा महिलाओं और बच्चों के मृत शरीरों के साथ ऐसा घृणित कृत्य होता देख हिंदुओं के मन उदलित हो उठे और इस्लाम के अनुयायियों के प्रति उनका मन घृणा से भर गया।“
अतः जौहर राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों से अदम्य प्रेम और समर्पण की एक अद्भुत अभिव्यक्ति थी, जहां राष्ट्र, क्षणभंगुर देह और देश से परे प्रज्ञा के शिखर पर था l 632 ईस्वी में शुरू हुए इस्लाम के बेड़े ने सीरिया,फिलिस्तीन, बेंजेनटाइन रोम, मैसोमोपोटामिया, इराक, मिस्र ,ईरान तथा उत्तर अफ्रीका, स्पेन, पुर्तगाल आदि फतेह कर उनका इस्लामीकरण कर लिया गया। इनके इस कलंकित इतिहास में केवल हिन्दू नारिया ही थी, जिन्होंने जौहर के द्वारा अरबी इस्लाम के अनैतिक मूल्यों के साथ हिंदु धर्म के सह-अस्तित्व की समस्त संभावनाओं को नेस्तानाबूत करके रख दिया। मत भूलिए, इसी जौहर की अग्नि से “सिसोदिया राजवंश” उत्पन्न हुआ,जिसमे महाराणा हम्मीर, कुम्भा,सांगा और प्रताप जैसे हिदू धर्मध्वज रक्षक पैदा हुए l
इसलिये आइये, नमन करे उन महान वीरांगनाओं को, जिन्होंने पाशविक शत्रु के हाथ जाकर अपना सतीत्व और राष्ट्र का हिन्दुत्व नीलाम कराने की अपेक्षा अपने स्वत्व के लिए जौहर की अग्नि में जलना स्वीकार किया और माँ भारती की रक्षा के यज्ञ में सशरीर की समिधा अर्पित कर सदा के लिए अमर हो गईं।
“वो गढ़ नीचो किम झुके, ऊँचों जस -गिर वास l
हर झांटे जौहर जठे, हर भाठे इतिहास ll
मेरे लिए तो सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि जौहर से पूर्व के अदृश्य अलौकिक रहस्य को निम्न पुस्तको के माध्यम से दृश्य बना कर अपनी रचनात्मक दृष्टि दे सका,आभार –
- भारतीय मध्य युग का इतिहास /इश्वरीप्रसाद /इंडियन प्रेस (पब्लिकेशन )प्रा.लि. इलाहबाद l
- असत्यमेंव जयते/अभिजीत जोग/भीष्म प्रकाशन/पुणे l
- भारतवर्ष के आक्रांताओं की कलंक कथाएं/मेजर (डॉक्टर) परशुराम गुप्त/प्रभात पेपरबेक/नयी दिल्ली l
- भारत में इस्लाम –1/हिंदुओं का हश्र/विजय मनोहर तिवारी/गरुड़ प्रकाशन/गुरुग्राम l
- महाराणा/ओमेंद्र रत्नू/प्रभात प्रकाशन /नयी दिल्ली l
- हिन्दू राष्ट्र की सांस्कृतिक संरचना/जे. नंदकुमार/इंडस स्क्रोल प्रेस l
- हटीलो राजस्थान/कुं.आयुवान सिंह हुडील/आयुवान स्मृति संस्थान/जयपुर l
- चित्तोड़ के जौहर और शाके /सवाई सिंह धमोरा /राजस्थानी ग्रंथागार /जोधपुर l
- चित्तोड़ की रानी पद्मिनी/राजेन्द्र शंकर भट्ट/राजस्थानी ग्रंथागार /जोधपुर
- संस्कृति वर्चस्व और प्रतिरोध/पुरुषोत्तम अग्रवाल/राजकमल प्रकाशन/दिल्ली
- Six Glorious Epochs of Indian History/D.Savarkar l
- जौहर/श्यामनारायण पाण्डेय/सरस्वती -मन्दिर/काशी l