उतरायण और दक्षिणायन में अंतर और देवलोक रहस्य
February 2, 2024जोहर का इतिहास
हिंदू राष्ट्र के पुनर्जागरण की यात्रा जब राजस्थान में प्रवेश करती है तो एक विराट व्यक्तित्व महाराणा प्रताप के प्रतीक के सामने आकर ठहर जाती है। जिसे नमन किए बिना हिंदुत्व पर संवाद की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परंतु इतिहास के कितने जानकार यह जानते हैं कि कीका को महाराणा प्रताप मे रूपांतरित करने वाली ऐतिहासिक घटना कौनसी है? महाराणा प्रताप के हृदय में हिंदुत्व की अग्नि को जीवन पर्यंत प्रज्जवलित रखने का कार्य जिस ज्वाला ने किया वह महाराणा प्रताप को अपनी कर्मभूमि चित्तौड़ के एक सनातनी क्षत्रिय अनुष्ठान “जौहर’’ से प्राप्त हुई थी।
जौहर, जिसमें सनातनी हिंदू नारिया युद्ध काल में सतीत्व धर्म की रक्षा के लिए शरीर को तुच्छ घोषित करती हुई अग्नि स्नान कर मोक्ष को प्राप्त होती थी। जौहर का शाब्दिक अर्थ प्रकृति की जय अथवा प्रकृति को सुपुर्द कर देना ही प्रतीत होता है।जौहर एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक कर्म है जिसने उपनिवेशिक धारणा वाले अरबी इस्लाम के साथ हिंदु धर्म के सह अस्तित्व की समस्त संभावनाओं को नेस्तानाबूत करके रख दिया। शायद इसीलिए हिदुस्थान के इस्लामीकरण के लिए एकजुट वामपंथी और अशराफ़ इस्लामी कट्टरपंथी एक विमर्श स्थापित करते हैं कि ’’जौहर’’ हिंदू नारियों के द्वारा किया गया एक कायराना कृत्य था। वे बयां करते हैं कि आक्रांता के सामने बजाय व्यक्ति के तौर पर मुकाबला करने के सामूहिक आत्मदाह क्यों किया? वे प्रश्न करते हैं कि आखिर किन कारणों से भारतीय हिंदू स्त्रियों ने विषपान अथवा कटार आत्मघात के स्थान पर जौहर जैसे विकट विकल्प को चुना?
प्रत्येक कार्य का कारण अवश्य ही होता है।फिर चाहे वो प्रत्यक्ष हो या परोक्ष।इसलिए किसी ऐतिहासिक घटना की सत्यता को जांचने के लिए हमें इतिहास का ही अध्ययन वहीं से करना होगा ,जहां ये प्रकट हुआ।
आजाद भारत के राजस्थान - गुजरात प्रांत की पश्चिमी सीमाओं पर या यूं कहे कि आज के पाकिस्तान का करांची,दक्षिणी पूर्वी भाग कभी अखंड भारत का सिंध प्रदेश था। यह वही पवित्र सप्तसिंधु प्रदेश है जिसके कारण हमारा राष्ट और राष्ट्रीयता हिंदू है। अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही सिंध प्रदेश ने अरब देशों के आक्रांताओं के आक्रमण भी सबसे अधिक सहे हैं। आक्रान्ताओं के लिए सिंध ही हिंद प्रवेश द्वार था।
सिंध प्रदेश अपने पड़ोसी राज्यों की उन सभी धार्मिक ,राजनीतिक और सैनिक कार्यवाहियों का साक्षी रहा है,जो तलवार के बल पर इस्लाम के नाम पर गैर - इस्लामी लोगो पर की जा रही थी। सिंध प्रदेश इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद द्वारा मक्का-मदीना में की गई कथित धर्म सम्मत सैनिक कार्यवाही से लेकर उनकी मृत्यु उपरांत के खलीफाओं की गैर मर्यादित युद्ध कार्यवाही तक का जीवंत गवाह था।सिंध प्रदेश 627- 628 ईस्वी की खैबर की लड़ाई से लेकर अपने पर 711 ईस्वी मे हुए आक्रमण तक इस्लाम के नाम जो कुछ हुआ ,उसका गवाह रहा। सिंध प्रदेश ने देखा कि इस तरह 634-708 ईस्वी तक सीरिया,फिलिस्तीन, बेंजेनटाइन रोमन साम्राज्य , मैसोमोपोटामिया, इराक, मिस्र ,ईरान तथा उत्तर अफ्रीका आदि फतेह कर उनका इस्लामीकरण कर लिया गया। 638 ईस्वी से लेकर 712 ईस्वी तक नौ खलीफाओं ने लगभग 14 आक्रमण भारत पर कराए थे। निश्चित ही इन युद्धों में ऐसा कुछ घट रहा था,जो मानवता को शर्मसार करने वाला अवश्य ही था।
ये युद्ध 679 ईस्वी में सिंध के राजा बने दाहिरसेन के लिए धर्म युद्ध तो कतई नहीं थे। अवश्य ही सिंध प्रदेश ने देखा होगा कि युद्ध में बंदी बनाए लोगों को कत्ल किया जा रहा है, दुश्मन को लूटना सवाब का काम है,उनकी औरत और बच्चे गनीमत का माल है।शत्रु पक्ष की स्त्रियों, बहू बेटियों को योन दासियों के रूप में,लोंडियो के रूप में पकड़ा जाकर बेचा जा रहा है ।
यहां तक की मृत महिलाओं के साथ भी बलात्कार जैसा पैशाचिक कृत्य भी किया जा सकता है ।नही तो क्यों 712 ईस्वी में सिंध प्रदेश पर अरबी मुस्लिम आक्रांता मोहमद बिन कासिम के आक्रमण पर हिंदू राजा दाहिरसेन की वीर रानी लाडी बाई ने विषपान या कटारघात के स्थान पर अन्य स्त्रियों के साथ अग्नि स्नान जौहर का वरण किया।*परंतु रानी का क्षत्रिय चरित्र भी अद्भुत था l उन्होंने अपने पति राजा दाहिरसेन की वीरगति का संदेश पाकर तुरंत जौहर करने का निर्णय नहीं किया, अपितु उन्होंने शत्रु को परास्त करने के लिए क्षात्र धर्म का पालन करते हुए युद्ध करना उचित समझा। रानी ने अपनी सेना का नेतृत्व संभाल लिया।गद्दारों के बल पर युद्ध के मैदान में खड़े शत्रु पर उन्होंने एक राष्ट्रभक्त वीरांगना की भांति सिंह गर्जना की ।
एक हिन्दू नारी द्वारा इस प्रकार अपने लिए चुनौती प्रस्तुत करते हुए देखकर आतातायियों का खून सुख गया। सम्भवतः अब तक के विजयी अभियान में अरब की सेनाओं का किसी ऐसी वीरांगना से पहली बार मुकाबला होने जा रहा था। सप्त सिन्धुशक्ति के दुर्गा रूप को देखकर नर पिशाचों में हाहाकार मच गया। दुर्गास्वरूपा रानी अपने मुट्ठी भर गणों के साथ जिधर भी निकलती,उधर ही शत्रु के रुण्ड-मुंड के ढेर लग जाते। किन्तु गद्दार मोक्षवासन की गद्दारी के कारण रानी ने और उनकी वीरांगना सहेलियों ने पाशविक शत्रु के हाथ जाकर अपना सतीत्व और राष्ट्र का हिन्दुत्व नीलाम कराने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में जलना स्वीकार किया और माँ भारती की रक्षा के यज्ञमें सशरीर की समिधा अर्पित कर सदा के लिए अमर हो गईं। निश्चित रूप से जौहर रचाने वाली परम्परा तो इन आक्रान्ताओं को देखने के लिए भारत में ही मिली थी।(*संदर्भ डॉक्टर राकेश कुमार आर्य ,राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन,प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली)
अरब के इस्लामी आक्रमण के विरुद्ध हिंदू राजा दाहिरसेन की वीर रानी लाडी बाई का जौहर संभाव्यता हिंदुस्तान के ज्ञात इतिहास का पहला जौहर है। भारतीय न्याय सिद्धांत "जहां जहां धुंआ हैं, वहां वहां आग है" के अनुमान प्रमाण के आधार पर हिंदू रानी की आशंका"जहां जहां इस्लामी आक्रमण है वहां वहां बर्बरता ही है"उनकी मृत्यु उपरांत सही साबित हुई। राजा दाहिरसेन की दोनों पुत्रियाँ सूर्य देवी और परमिल देवी आक्रान्ता मोहम्मद बिन कासिम के कब्जे में आ गई। उसने इन दोनों बहनों को योन दासियों के रूप में अपने सर्वोच्च धर्माधिकारी खलीफा को पेश किया गया।जब हिन्दू राजकुमारियों के साथ ऐसा व्यवहार हुवा तो अन्य प्रजाजनो के साथ किस प्रकार की क्रूरता की गई होगी?
अब हम ये जानने की और आगे बढ़ते है कि जिस इस्लामी बर्बरता को जौहर का तात्कालिक कारण मानते हुए उल्लेख कर रहे है, वह मात्र कपोल कल्पना है या कोई सच्चाई भी है।जिस सिंध प्रदेश की हम चर्चा कर रहे है,वह आज इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान में है और दुर्भाग्य से खलनायक मोहमद बिन कासिम पाकिस्तान का राष्ट्रीय नायक है और भारत में,दूषित विचारधारा ने हमारे राष्ट्र नायको को खलनायक बना दिया है। इसलिए अब लिखित में ऐसा कोई ईमानदार दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिससे हमे रानी लाडी बाई के हृदय में उमड़ी उस समय की आशंकाओं की जानकारी मिले।किंतु भारतीय दर्शन "कार्य - कारण सिद्धांत "का पक्षधर है और अरुंधती न्याय हमारा मार्गदर्शन-कर्ता है, जिसके अनुसार हम ज्ञात से अज्ञात तक पहुंच सकते है।
हम जानते है कि जिस विषय के लिये जो प्रमाण उचित हो, उस विषय का वास्तविक ज्ञान केवल उसी प्रमाण द्वारा पाया जा सकता है, अन्य प्रमाणों द्वारा नहीं| चूंकि क्षत्रिय रानी का जौहर सनातन आधारित था तो इसी जौहर के संदर्भ में प्रमाण भी सनातन रीति नीति से ही उपलब्ध है जैसे अनुमान प्रमाण, उपमान प्रमाण, और शब्द प्रमाण| इस अध्याय में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि कौन सा प्रमाण जौहर करने के निर्णय के कारण को उजागर करने में समर्थ है-
- अनुमान प्रमाण - जब कर्म प्रत्यक्ष हो परंतु कर्म का कारण दिखाई नहीं दे रहा हो तो कर्म के कारण को समझने के लिए अनुमान प्रमाण महत्वपूर्ण है।एक उदाहरण द्वारा इसे समझने का प्रयास करते हैं: मान लीजिए कि एक पशु देखता है कि एक मनुष्य ने हाथ में लाठी उठा रखी है।पशु वहां से भाग जाता है।यह ज्ञान पशु को कैसे प्राप्त हुआ? अवश्य ही पशु किसी प्रमाण की सहायता से इस निष्कर्ष पर पहुंचा| पहले, पशु ने देखा कि सामने एक मनुष्य ने लाठी उठा रखी है। फिर, 'इस मनुष्य ने लाठी क्यों उठा रखी है?' ऐसी जिज्ञासा होने पर उसके निवारण करने के लिए उसने अपनी स्मृति में संचित पूर्व अनुभवों का स्मरण किया : 'जहां-जहां मनुष्य लाठी उठा कर खड़ा हो, वहां-वहां वह पीटने की मंशा से ही खड़ा होता है'| और इसी पूर्व-ज्ञान के द्वारा वह इस निष्कर्ष पर पहूंच जाता है कि 'इस मनुष्य ने लाठी उठा रखी है, इसलिये यहां से भाग जाना चाहिये।
सिंध प्रदेश के निकटवर्ती गैर इस्लामी साम्राज्यों पर अरब के आक्रांताओं द्वारा किए जा रहे आक्रमण के दौरान अवश्य ही कुछ ऐसा विभस्त,असहनीय,अमानवीय घट रहा था जिसके कारण रानी लाडीबाई के स्मृति पटल पर समर्पण /विषपान के स्थान जौहर जैसा ह्रदय विदारक विकल्प सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ। अवश्य ही पराजय की परिस्थितिया उत्पन्न होने पर रानी के अंतःकरण से उत्पन्न अनुमान प्रमाण ही जौहर का कारण बना होगा ।
- शब्द प्रमाण - जो व्यक्ति किसी वस्तु-विषय का जाना-माना ज्ञाता हो, और जो किसी बाह्य प्रभाव से अपने मत को झुठला नहीं सकता, ऐसे विद्वान पुरुष के वचन शास्त्र प्रामाणिक होते हैं। इस आधार पर हम जौहर का तात्कालिक कारण युद्ध काल की इस्लामिक बर्बरता ही थी ,को सिद्ध करने का प्रयास करते है –
1- श्री अभिजीत जोग ,भीष्म प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक ”असत्यमेंव जयते” में पृष्ठ संख्या 238 पर उल्लेख करते है कि "मुस्लिम इतिहास के विद्वान एम के खान की इस्लामी जिहाद :लेगेसी आफ फोर्सेड कन्वर्जन,इंपीरियलीजम एंड स्लेवरी पुस्तक में लिखते हैं कि पैगंबर ने मदीना में यहूदी कबीले बनू कुरेजा पर(627 ई.स.)खैबर के यहूदियों पर (628 ई.स.) जिस तरह आक्रमण किया और उनके साथ जैसा व्यवहार किया था वह उनके आने वाले इस्लाम के जिहादियों के आदर्श उदाहरण बन गया ।जिहादियों ने /मुस्लिम आक्रांताओं ने सारे कृत्य पैगंबर का अनुसरण करते हुए अल्लाह का कार्य समझते हुए किया।
उपर्युक्त पुस्तक में वर्णित इस घटना के बारे में और अधिक जाकारी प्राप्त करने के लिए जब हम पब्लिक डोमेन पर जाते है तो एक वर्णन हमे https://hindiquranohadees.wordpress.com पर कुछ इस तरह मिलता है:- अबू सईद खुदरी (रद़ियल्लाहु अ़न्हु) ने बयान किया कि कुरैज़ा के यहूदी हज़रत साद बिन मुआज़ को सालिस(मध्यस्थ) बनाने पर तैयार हो गये तो रसूलुल्लाह ने उन्हें बुला भेजा। जब वो आए तो आँहज़रत ने फर्माया कि अपने सरदार के लेने को उठो या यूँ फरमाया कि अपने में सबसे बेहतर शख्स को लेने के लिये उठो। फिर वो हुज़ूरे अकरम के पास बैठ गये और आँहज़रत ने फ़र्माया कि बनी-कुरैज़ा के लोग तुम्हारे फैसले पर राज़ी होकर (क़िले से) उतर आए हैं (अब तुम क्या फैसला करते हो) हज़रत साद (रद़ियल्लाहु अ़न्हु) ने कहा कि, “फिर मैं ये फैसला करता हूँ कि इनमें जो जंग के क़ाबिल हैं उन्हें क़त्ल कर दिया जाए और इनके बच्चों और औरतों को कैद कर लिया जाए।” आँहज़रत ने फ़र्माया कि आपने वही फैसला किया जिस फैसले को फ़रिश्ता लेकर आया था और जो अल्लाह का हुक्म था। सहीह बुखारी 6262, 3043, 3804, 4121.
2 -रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित तथा उत्तर प्रदेश में साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले मेजर (डॉक्टर) परशुराम गुप्त, प्रभात पेपरबेक द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक के प्रथम संस्करण "भारतवर्ष के आक्रांताओं की कलंक कथाएं" के फिरोज शाह तुगलक खंड के पृष्ठ संख्या 122 पर लिखते हैं कि ताजरीयत - अल - असर के अनुसार मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं द्वारा भगाई हुई हिंदू महिलाओं के साथ मात्र शीलभंग ही नहीं किया जाता था वरन उनको अवर्णीनिय यातनाएं भी दी जाती थी,जैसे लाल गर्म लोहे की सलाखों को हिंदू महिलाओं की योनि में बलात घुसा देना ,उनकी योनियों को सिल देना तथा उनके स्तनों को काट देना आदि।
3 श्री ओमेंद्र रत्नू, प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक “महाराणा” के पृष्ठ संख्या 164 पर लिखते हैं कि इस्लामी विचार के अनुसार गैर मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करना न्योचित माना गया है । युद्ध में जीती गई गैर मुस्लिम महिलाओं को उनके धर्मगुरु लौंडी कहकर भी संबोधित करते हैं ।और यही इस्लामी अभियानों की आधारभूत अवधारणा भी थी। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किया जाने वाला एक और घृणित कृत्य था मृत शरीर के साथ संभोग। इसे अंग्रेजी में नैक्रोफीलिया कहते हैं। इस्लामी आक्रांताओं द्वारा महिलाओं और बच्चों के मृत शरीरों के साथ ऐसा घृणित कृत्य होता देख हिंदुओं के मन उदलित हो उठे और इस्लाम के अनुयायियों के प्रति उनका मन घृणा से भर गया।
4-अलहुदा पब्लिकेशन ,उर्दू बाज़ार ,जामा मस्जिद ,दिल्ली द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक मुख्तसर सहीह मुस्लिम शरीफ पहला भाग के पृष्ठ संख्या 507 /शादी के मसाइल का बयान/बाब /836 /फायदा में उल्लिखित है कि “लौंडी उस महिला को कहते हैं जो जंग में पकड़ी जाए और माले गनीमत के तौर पर हिस्से में आए ।ऐसी लौंडियों से एक हैज(*पीरियड) आने तक उनसे संभोग नहीं करना चाहिए।“
5- श्री विजय मनोहर तिवारी ने गरुड़ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक “भारत में इस्लाम – 1”,हिंदुओं का हश्र के खंड 23 ,बदनसीब हिंदू राजकन्या की कहानी वाले भाग में लिखा है कि जब गुजरात के राजा कर्ण की रानी कमला दी खिलजी (*अलाउद्दीन खिलजी) के पहले ही हमले (*1299 ई.स).में गुलामी के साथ दिल्ली लाई गई।उसकी बेटी देवल दी को लाने के लिए दूसरी बार हमलावर गुजरात भेजे गए। कुछ ही अरसे में देवल दी भी खिलजी के महल में आ गई। वह छोटी सी बच्ची है।
उक्त संदर्भित पुस्तके प्रायोजित इतिहासकारों के द्वारा छिपा दिए गए सत्य को उजागर करने वाली है,पठनीय है और इनमे उल्लिखित कथन प्रमाणित करने के लिए प्रयाप्त है कि दाहिरसेन की रानी का जौहर करने का निर्णय जिन विभस्त, पैशाचिक घटनाओं की आशंकाओं पर आधारित था,वह निर्मूल नहीं था। सतीत्व की रक्षा में सिंध प्रदेश की रानी के जौहर की ज्वाला से उठा धुंआ अनुमान प्रमाण को सिद्ध करता हुआ राजपूताना पहुंच गया। यहां की वीरांगनाओं ने भी अंततःयह सिद्ध ही कर दिया कि जहां-जहां इस्लामी आक्रांताओं के आक्रमण हैं, वहां वहां अमानवीय बर्बरता ही है।
सर्वोच्य बलिदान जौहर की ऐतिहासिक घटना हमें यह परामर्श देती है कि कोई भी विमर्श इस तर्ज पर स्थापित किया जाना चाहिए कि “किसी भी धर्म का मूल्यांकन उसकी किसी किताब में लिखित शब्दों के आधार पर नहीं करना चाहिए बल्कि अन्य लोगों के प्रति उसके अनुयायियों के रवैये के आधार पर किया जाना चाहिए,क्युकी चित्र ही चित्रकार की मनोदशा का प्रत्यक्ष प्रमाण होता है।
अगर अब भी आप सहमत नहीं है तो अरुंधती न्याय के अनुसार ही वर्तमान के ज्ञात उदाहरण से भूतकाल के अज्ञात को जानने के लिए चिंतन करते है-
1 - सन 1999,करगिल युद्ध के पहले हीरो भारतीय सेना के कैप्टन सौरभ कालिया। इस्लामिक स्टेट पाकिस्तानी सेना ने 22 दिन बर्बरता के साथ सलूक करने के बाद कैप्टन सौरभ कालिया के शव को भारत को सौंप था।कैप्टन सौरभ कालिया के साथ दुश्मनों ने जो बर्ताव किया था उसकी वजह से उनके शव को उनके परिवार वाले तक नहीं पहचान पाए थे।अब जिन्हे और युद्ध प्रमाण चाहिए उन्हें शहीद कैप्टन कालिया के परिवार व भारतीय सेना से संपर्क करना चाहिए।
2- अक्टूबर,2023 को फिलीस्तीन के हमास आतंकियों द्वारा इजराइल पर किए गए हमले में वही वंशानुगत क्रूर मानसिकता का नंगा प्रदर्शन देखने को मिला। हमास के आतंकियों ने इजरायल की महिला सैनिकों के साथ अभद्रता की। उन्हें अगवा कर निर्वस्त्र कर कुचला तथा उनके मृत्य शरीर के साथ मानवता को शर्मसार करने वाली बर्बरता की। जिसे पूरी दुनिया ने देखा है।
इस अंक में केवल मात्र जौहर के संभावित कारणों को समझने का प्रयास किया है। इस लेख के द्वारा किसी पंथ विशेष की भावनाएं आहत करने का प्रयास नहीं किया गया है l उपर्युक्त वर्णित तथ्य इतिहास के अरबी और तुर्क आतातायी मुस्लिम आक्रांताओ की अनंत कलंक कथा का अंश मात्र है l अरबी और तुर्क आतातायी मुस्लिम आक्रांताओ के पाशविक अत्याचारों को भारतीय मुसलमानो ने भी उतना ही भोगा है, जितना अन्य पंथ के लोगो ने l हम सब भारतीयों पर वाजिबुल कत्ल का नियम सम्मान रूप से लागू था l फिर चाहे हम भारतीय शैव,शाक्त्त, वैष्णव हो ,सिख,यहूदी हो या मुसलमान l
अगला अंक आपके समक्ष "राजपुताना के जौहर:हिंदुत्व की चिति "के साथ भगवती माँ पद्मिनी के बलिदान के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा। याद रखे पूर्ण सत्य किसी के पास नहीं है l जय हिंद ,जय भारत।